No 72. Hui Main Teri Joganiya……

राहों में अंधेरे थे

सूनी सूनी सी जिंदगी हुई थी

जिंदगी में आकर खुशियां

जिंदगी से रूठ सी गई थी

उम्मीदें भी रेत की तरह

हाथों से कुछ यूं फिसली थी

 ख्वाहिशें भी जब सारी

 अधूरी सी ही रह गई थी

तुमने थामा था

तब हाथ मेरा

जब रूठा था

मुझसे रब मेरा

मेरी अंधेरों से भरी जिंदगी का

तब तू बन

गया था सवेरा

फिर हुआ क्या था ऐसा

यकीन की डोर

जो संग तेरे बांधी थी

तुमने ही

विश्वास की

वो डोर तोड़ दी है

मन ये उदास है

ख्वाबों की जगह आँखो में नमी

ठहर सी गई है

ये धड़कनें 

पूछे तुझसे साथियां

 क्या मेरी थी खता 

देना था ना जब साथ तो

ये हाथ क्यों थामा था

Novel – Hui Main Teri Joganiya

Author – Pankh

App – Pocket FM , Pocket Novel

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#pankhmythoughts

मुझको यूं रुलाकर

आखिर तुमने क्या पाया है

क्या मेरा दर्द

तुझे नजर भी ना आया है

तू था रूह

मैं थी काया

मैने रब को था तुझमें पाया

कैसे कहूं तुझसे मैं माहिया 

हुई मैं तेरी जोगनिया

तुझसे ही साथियां

मेरी चाहते हुई पूरी थी

बिन तेरे साथी

मेरी भी हर हसरत अधूरी है

जो तुम कहना चाहते थे

वो तुमने कह दिया है

पर हम कह ना पाए

जो मेरी दास्तां है

पढ़ ले मेरी आंखों में

क्या मेरी कहानी है

कैसे तू ना देंख पाई

मैने कभी कहां 

तुझसे कुछ छिपाया है

मैं जहां , तू वहां

तू ही तो मेरी धड़कनों में 

बहती बन के रवानी है

तू गर मेरी जोगनिया है

तो मैं भी तेरा जोगी हूं

रूह तेरी मेरी एक है 

धड़कनें भी एक है 

दिल भी जब एक है

तो हम 

जुदा ही कहां है

प्यार दिल से दिल का वादा है

दिल से निभाया जाता है

जिसे छूकर जताया जाए

वो इश्क ही कहां है

प्रेम रूह का दर्पण है

मन से मन का संगम है 

तेरी पाकिजगी 

मेरा समर्पण है

जिन दायरों में हम बंधे है

उन दायरों को हम निभाएंगे

प्रेम की एक नई 

परिभाषा

हम लिख जायेंगे

•••• पँख ••••

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