कान्हा की बाहों में राधा
आज
थोड़ा खोई खोई सी लागे है
कान्हा ने पूछ लिया
मै जब हूं यहां
तू क्या सोचे , क्या विचारे है
कान्हा
होता कैसा रंग प्रेम का
रूप कैसा होता है
मै तो तुझमें ही रहती हूं
कान्हा तू रहता कहां है
राधे
प्रेम का सार तू
तू ही मेरा आधार है
क्यों अनजानी बन रही तू
तू सब जाने है
बाते ना बना तू कान्हा
मुझको प्रेम की
परिभाषा बता दें
मईया यशोदा का लल्ला मैं
गोपियों का सखा मैं
मीरा का गिरधर भी हूं
माखन चोर भी मैं हूं
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#pankhmythoughts
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तुझ संग जब रास रचाऊं
तो बन जाता राधारासबिहारी मै
प्रेम के होते कई रंग है
प्रेम के हर रूप मे राधे
मेरा ही अक्स बसा है
जो शब्दों मे पिरोया जाए
वो प्रेम ही कहां है
इतनी सी ही प्रेम की परिभाषा है
जहां है समर्पण
जहां मर्यादा है
तुम जहां रहती हो राधे
मेरा घर ही वहां है
हम तो एक ही है
हम दो कहां है
मेरे नाम से पहले जग तेरा नाम लेता है
•• पंख ••
खूबसूरत रचना!!!
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